नमूना बनती सामाजिक सभ्यता

पटना का दानापुर रेलवे स्टेशन, प्लेटफॉर्म नंबर 3, भीड़ आम दिनों की तरह ही थी, लेकिन वो दिन आम ना था। कई लोगों के चेहरे मास्क से ढके थे। आँखें एक दूसरे को घूर रही थीं। जैसे मास्क के पीछे का चेहरा देखना चाहती हो। कुछ समझदार लोग बीच-बीच में हाथ सेनिटाइज कर रहे थे, वैसे सोशल डिस्टिनसिंग का कोई हिसाब ना था। स्टेशन पर यात्री अलग-अलग झुंड बना कर अपनी-अपनी ट्रेन के आने का इंतजार कर रहे थे। 

मैं भी अपनी ट्रेन के आने का इंतजार कर रही थी। सब कुछ आम दिनों की तरह था सिवाय मास्क के। ट्रेन में यात्रियों के साथ उन्हें विदा करने पहुँचे लोग भी थे, जो अपने यात्रियों को सुरक्षा की कुछ नसीहतें देकर विदा कर रहे थे।

कोविड 19 के कारण मैं बहुत दिनों बाद घर से निकली थी। मेरी पूरी कोशिश थी कि कोरोना से बचाव के सारे नियमों का पालन करूँ। मैं गाड़ी संख्या 02788, दानापुर-सिकन्दराबाद हमसफर एक्सप्रेस में चढ़ी और यह क्या? इतने लोग! मैं कुछ समझ पाती उससे पहले लोगों से बचते- बचाते अपनी सीट पर पहुँची। जैसे-तैसे सामान रखा और बैठ गई। भीड़ की बेफिक्री देख कर लगा "क्या सच में कोरोना है?"  

आपको बता दूं कि कोविड-19 के कारण कई  रुटों पर ट्रेनें नहीं चल रहीं हैं। सरकार ने कोरोना के चलते स्पेशल ट्रेनें चलाई हैं, जो अधिकतर एयर कंडिशन्ड है, जिसे आम लोगों की जेब पर मार कह सकते है। लॉक डाउन के चलते घर लौटे मजदूर, नौकरी पेशा लोग काम के सिलसिले में दोबारा घर से निकल रहें हैं, जो ट्रेनों में यात्रियों की संख्या बढ़ा रहा है। इस पर कई स्पेशल ट्रेनों में तत्काल रिजरवेशन की सुविधा भी बंद कर दी गई है। 

यह तो हुआ यात्रा का एक पहलू। आइये जानते है यात्रा के दूसरे पक्ष को। सबसे पहले मैं आपको बता दूं कि मैं जिस ट्रेन में यात्रा कर रही थी उसमें अधिकतर पुरुष यात्री थे। जो महिलाओं को अजीब तरह से घूर रहे थे। बनियान पर घुमते और जोर-जोर से गीत सुनते-सुनाते जवानों ने ट्रेन में अपनी ही दुनियां बसा रखी थी। 

इस पर ऐसे लोग भी मिले जिनका हर वाक्य गलियों से सुशोभित हो रहा था। वीडियो हो या ऑडियो कॉल की बातें, जब तक चार लोग सुन ना ले तो बात कैसे पूरी हो? कुल मिलाकर शोर मचाते हुए यात्रियों ने ट्रेन के डिब्बे को चिड़िया घर बना रखा था। बेफिक्री के साथ मूँगफली खाना और उसके छिलके फर्श पर गिराना चल रहा था। और भी खाने-पीने की चीजें जहां-तहां गिरी पड़ी थी। इस वजह से पूरा डिब्बा कचरा घर बना हुआ था। अब ऐसे में टॉयलेट भला कैसे साफ रह सकता था?

शायद यह सब आपके लिए आम हो, लेकिन हम तो सभ्य समाज के लोग है ना...? सार्वजनिक और निजी जीवन का फर्क समझाने के लिए क्या कोई तारणहार आने वाला है? इस पर कोविड-19 जैसी महामारी में हाथ सेनेटाइज करना, मूंह में मास्क लगाना, सोशल डिस्टिनसिंग हमारे लिए जुमला है! अब जोर से बोलो सिया वर राम चन्द्र की जय।

टिप्पणियाँ

Himanshu ने कहा…
नमूने हर जगह मिलते हैं ।
नितिन गोरे ने कहा…
ऐसे कुछ अनपढ़ लोग भी होते है इंडिया में।
Unknown ने कहा…
हम आपदा में डरते हैं आपदा से नहीं।
Unknown ने कहा…
Har..line padkar bs aisa lagta h k hum live hai...
आनंद शर्मा ने कहा…
यह एक कड़वी सच्चाई है
कुमार रुस्तम ने कहा…
जोर से नहीं प्रमे से बोलो शियावार रामचंद्र कि जय।😊
ATUL S MODI ने कहा…
Varsha Sabhya Samaj aur Sabhyata me antar he.. is antar ko jo samajh saka wah Sabhya ho gya...😊

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